Please enable javascript.mard ko dard nahi hota reviewमर्द को दर्द नहीं होता, रेटिंग:{3.5/5} , mard ko dard nahi hota movie review in hindi, Rating:{3.5/5} : राधिका मदान,अभिमन्यु दासानी,गुलशन देवैया स्टार | Navbharat Times

मूवी रिव्यू

मर्द को दर्द नहीं होता

रेखा खान | नवभारत टाइम्स | 22 Mar 2019, 03:09:54 PM
ऐक्टर:
राधिका मदान,अभिमन्यु दासानी,गुलशन देवैया
डायरेक्टर :वासन बालाश्रेणी:Hindi, ऐक्शन, ड्रामा, कॉमिडीअवधि:2 Hrs 14 Minरिव्यू लिखें

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लेखक-निर्देशक वासन बाला की फिल्म 'मर्द को दर्द नहीं होता' शीर्षक भले बॉलिवुड की मार-धाड़वाली मसाला फिल्म लगे, मगर जब आप इसे देखते हैं, तो आपको पता चलता है कि यह एक दुर्लभ बीमारी पर आधारित है, जिसमें निर्देशक वासन बाला ने ऐक्शन, कॉमिडी, ड्रामा, थ्रिल और रोमांस को कुछ यूं पिरोया है कि फिल्म आपको भले फर्स्ट हाफ में थोड़ी लंबी लगती है, मगर मनोरंजन में कमी नहीं आने देती।

कहानी: कहानी है सूर्या (अभिमन्यु दासानी) की, जो एक अनोखी बीमारी याने कंजेनिटल सेंसिटिविटी से पीड़ित है। जन्मजात मिले इस रोग के कारण उसे कितना भी मारो, दर्द का अहसास नहीं होता। अपनी इस दुर्लभ बीमारी के कारण सूर्या ने बचपन से ही बहुत कुछ सहा है। सूर्या की ट्रेजिडी यह है कि पैदा होने के बाद उसी की तरह सुपर पावर रखनेवाली उसकी मां (श्वेता बसु) एक चेन चोरी किए जाने के हादसे में चल बसी थी और उसके बाद जब सूर्या का पिता (जिमित त्रिवेदी) इसी बात से हलकान होता रहता है, कि वह ऐसी दुर्लभ बीमारीवाले बच्चे को कैसे हैंडल कर पाएगा। सूर्या समाज में चेन चोरी करके भाग जानेवाले और गुंडों का सफाया करके कराटेमैन बनना चाहता है। उसकी इस सोच में सुप्री (पूजा मदान) उसके साथ है। पूरी कहानी सूर्या के नजरिए से फ्लैशबैक में चलती है, जो बचपन से लेकर उसके जवान होने की घटनाओं के साथ आगे बढ़ती है। सूर्या के जीवन के दो आधार हैं, एक उसके मजाकिया और शरारती दादाजी (महेश मांजरेकर) और दूसरा पानी। दादाजी ने बचपन से ही उसे सबक दिया हुआ है कि इस बीमारी में उसके लिए पानी पीना जरूरी है, वरना वह मर सकता है। कहानी में ट्विस्ट तब आता है, जब सूर्या को बचपन में बिछड़ी हुई सुप्री कराटे चैंपियन के रूप में मिलती है और साथ ही उसे यह भी पता चलता है कि उसके बचपन का आदर्श कराटे मनी (गुलशन देवइया) एक कराटे चैंपियन द्वारा 100 लोगों से फाइट करने की ट्रेनिंग देनेवाला है। इससे पहले की सूर्या सुपर मैन की तर्ज पर अपने बचपन की फेंटसी और सपनों को पूरा करता, उसे पता चलता है कि कराटे मनी के जुड़वा भाई जिमी ( (गुलशन देवइया) ने उसका जीना हराम कर रखा है। जिमी एक साइको डॉन है। उधर सुप्री भी पैसों की तंगी के कारण एक ऐसे लड़के से शादी करने को मजबूर है, जिससे वह प्यार नहीं करती। क्या सूर्या समाज से चेन चोरी करनेवालों का सफाया कर पाएगा? क्या वह सुप्री को उसके अनचाहे प्रेमी और कराटे मनी को जिमी के चंगुल से बचा पाएगा? यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।
ऑफिशल ट्रेलर: मर्द को दर्द नहीं होता
रिव्यू: वासन बाला ने निर्देशक के रूप में एक प्रयोग किया है, जिसे आप तर्क से परे रखकर देखेंगे तो इंजॉय कर पाएंगे? बाल सूर्या के नजरिए से उन्होंने बच्चों की फैंटेसी को खूबसूरती से दर्शाया है। फर्स्ट हाफ बहुत लंबा और कहीं-कहीं उबाऊ हो जाता है, मगर सेकंड हाफ में कहानी अपनी गति पकड़ लेती है। वासन बाला एक अरसे तक अनुराग कश्यप के सहायक निर्देशक रहे हैं, मगर उन्होंने अनुराग की छाया से परे अपने अंदाज की फिल्म बनाई है। फिल्म में सबसे मजेदार बात यह है कि इस दुर्लभ बीमारी को बेचारगी के साथ पेश करने के बजाय सुपर पावर और कॉमिक अंदाज में दिखाया गया है। किरदारों पर की गई मेहनत और कहानी की डिटेलिंग झलकती है। फिल्म के वन लाइनर्स याद रह जाते हैं, 'तुझे ब्रूसली नहीं सहेली की जरूरत है', 'हर माइंड ब्लोइंग कहानी के पीछे बुरे डिसिजन होते हैं।' फिल्म का ऐक्शन जबरदस्त है। फिल्म की एडिटिंग शार्प होनी चाहिए थी।
डेब्यू फिल्म होने के बावजूद अभिमन्यु दासानी ने बेहतरीन काम किया है। उनके एक्प्रेशन और अंदाज में कॉमिक हीरो की फील आती है। अभिमन्यु निश्चित रूप से लंबी रेस के घोड़े साबित होंगे। वासन बाला ने अगर क्रेडिट में राधिका मदान को री-इंट्रोड्यूज के तौर पर पेश किया है, तो गलत नहीं है। 'पटाखा' के बाद इस फिल्म में उन्होंने कमाल का काम किया है। नायिका होने के बावजूद उनका कराटे ऐक्शन गजब का और कन्विंसिंग है। गुलशन देवइयाने डबल रोल में भरपूर मनोरंजन किया है। महेश मांजरेकर की कॉमिक अदा फिल्म को राहत देती है। वह बहुत ही क्यूट दादा बने हैं।
फिल्म में सगीत की गुंजाइश कम रखी गई है, मगर किशोर कुमार के गाए, 'नखरेवाली' को अलग शैली में कोरियॉग्राफ किया गया, जो दिलचस्प लगता है।

क्यों देखें: अलग तरह की फिल्मों के शौकीन यह फिल्म देख सकते हैं।
रेखा खान
ऑथर के बारे में
रेखा खान
रेखा खान टाइम्स समूह के नवभारत टाइम्स में फीचर्स एंड एंटरटेनमेंट एडिटर हैं। उन्हें प्रसिद्ध प्रकाशनों, पत्रिकाओं और रेडियो में काम करते हुए दो दशक से भी ज्यादा का समय हो गया है। पत्रकारिता के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए उन्हें स्त्री शक्ति पुरस्कार, पावर ऑफ पेन, मोस्ट इंस्पायरिंग वुमन इन जर्नलिज्म, मोस्ट पावरफुल वुमन इन मीडिया जैसे कई पुरस्कारों से नवाजा गया है। जर्नलिज़म के अलावा रेखा को लिखना और पढ़ना भी बहुत पसंद है। उन्होंने 'कोई सपना न खरिदो' नामक एक गुजराती उपन्यास लिखा है। वह एक बहुत अच्छी वक्ता और एंकर हैं। टीवी शोज की एंकरिंग के साथ-साथ वह अभिनय में भी अपना हुनर दिखा चुकी हैं।... और पढ़ें
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