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शुक्रवार, 27 फ़रवरी, 2009 को 04:32 GMT तक के समाचार
 
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'कुँवारा होना वरदान साबित हुआ'
 

 
 
नौकरी की तलाश में
ताजा आँकड़ों के मुताबिक विदेशों में काम करने बीस हज़ार भारतीय बेरोज़गार हो गए हैं
मैंने इससे पहले आपको बताया था कि किस तरह मैनेजमेंट ने मुझे इस्तीफ़ा देने पर मजबूर किया.

नौकरी छूटने के बाद मैंने सबसे पहले तो अपने मासिक खर्चों पर निगाह डाली और अपने बजट को मैनेज करने पर ज़ोर दिया.

ख़ैर, मेरे बैंक ने इतना तो किया कि इस्तीफ़ा लेने से पहले तीन महीने की सैलरी दे दी. आपसे बात कर रहा हूँ तो दो महीने निकल चुके हैं.

लेकिन वेतन से कुछ बचा कर रखा है. मैं मूल रुप से बिहार के बक्सर का रहने वाला हूँ और पिता जी रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी हैं जो पटना में रहते हैं.

घर की आर्थिक स्थिति मज़बूत है, इसमें दो राय नहीं लेकिन अब इस मोड़ पर उनसे पैसे माँगने में शर्म आती है.

एक और बड़ी चीज़ जो मेरे पक्ष में है वो है मेरा कुँवारा होना. मैं बताऊँ तो शादी के लिए दो वर्षों से कई लड़की वाले घर पर आते रहे हैं लेकिन किस्मत कहिए कि अभी तक हुई नहीं.

मुझे लगता है कि ये मरे लिए वरदान साबित हुआ है.

ज़िम्मेदारियाँ ना के बराबर हैं. दिल्ली में नॉर्थ कैंपस के इलाक़े में छोटा मकान किराए पर लिया है जिसका किराया भी ज़्यादा नहीं देना पड़ता.

फ़िलहाल एक-एक पाई बचाना ही लक्ष्य है. ऑफ़िस से तो गाड़ी मिली थी लेकिन अब पुराने ढर्रे पर लौट आया हूँ. ब्लूलाइन की सेवा लेता हूँ.

कैसे कटते हैं दिन

अभी जॉब मार्केट से जो मुझे सीख मिल रही है, उससे साफ़ पता चलता है कि माँग उसी की है जो कई विधाओं में पारंगत हो क्योंकि ज़रूरी नहीं कि आपकी विशेषज्ञता जिस विषय में है, उसी सेक्टर में नौकरी मिल जाए.

इसलिए बेरोज़गारी के इस आलम में मैंने सोचा कि क्यों न कुछ और कोर्स कर लिए जाएँ.

 एक और बड़ी चीज जो मेरे पक्ष में है वो है मेरा कुँवारा होना. मैं बताऊँ तो शादी के लिए दो वर्षों से कई लड़के वाले घर पर आते रहे हैं लेकिन किस्मत कहिए कि अभी तक हो नहीं पाई.
 

तो कह सकते हैं कि फिर से छात्र बन गया हूँ. चार्टर्ड फ़ाइनेंशियल एनालिस्ट (सीएफ़ए) का कोर्स कर रहा हूँ. कम ही दिनों का है.

खाली समय निकालने का सबसे बेहतर तरीका यही है कि अपना कौशल और बढ़ाया जाए.

डेढ़ महीने में मैंने भी कई इंटरव्यू दे डाले. अंतिम परिणाम कहीं से नहीं मिला है.

लेकिन पिछले कुछ दिनों में एक भारतीय निजी बैंक में मैं कई दौर का इंटरव्यू दे चुका हूँ और थोड़ी बहुत उम्मीद वहाँ दिख रही है.

सच कहूँ तो वहाँ भी नई नियुक्तियों पर रोक है लेकिन मैं जब अपने बैंक में था तभी से वहाँ जाने के लिए बात शुरु की थी जिसका फ़ायदा मुझे मिलता दिखाई दे रहा है.

मूल मंत्र

ऐसा नहीं है कि मंदी में नौकरी ढूंढ़ना नामुमकिन है लेकिन पहले की तरह आसान भी नहीं.

बैंकों का पूरा ज़ोर फिलहाल वजूद बचाने पर है

मैंने अनुभव किया है कि मूल मंत्र यही है कि आप जहाँ नौकरी माँगने गए हैं, वहाँ की ज़रूरत से अधिक काम करने योग्य हों.

एक बात जो हर जगह इंटरव्यू के दौरान पूछते हैं, वो ये कि आप कितने पैसे की उम्मीद कर रहे हैं.

मेरे अनुभव के मुताबिक, आज का समय ऐसे मौकों पर मौन रहने का ही है, पिछली सैलरी बताइए और बाकी सामने वाले पर छोड़ दीजिए.

मैं खुशकिस्मत हूँ कि आत्मविश्वास ने मेरा साथ कभी नहीं छोड़ा. शेयर बाज़ार तो मेरी विशेषज्ञता है और मैं नया कोर्स भी कर ही रहा हूँ, लेकिन इसके अलावा म्युचुअल फँड, बॉंड, बैंकिंग, करेंसी जैसे विषयों की जानकारी मुझे है.

शायद इसीलिए अपने ऊपर एक भरोसा है कि जब आप अगली बार मिलेंगे तब मुझे नई नौकरी मिल चुकी होगी.

(विकास शंकर की आपबीती बीबीसी संवाददाता आलोक कुमार से उनकी बातचीत पर आधारित थी.)

अगली कड़ी में मंगलवार को आप फ़राज़ ख़ान की आपबीती पढ़ पाएंगे जो पेशे से आर्किटेक्ट हैं लेकिन रियल स्टेट बाज़ार में छाई मंदी के कारण बेरोज़गार हो चुके हैं.

 
 
सेंसेक्स नौकरी जाने की पीड़ा-5
पहली बार महसूस कर रहा था कि इस्तीफ़ा देने के लिए कैसे मजबूर किया जाता है.
 
 
सेंसेक्स नौकरी जाने की पीड़ा-4
शेयर बाज़ार की तरह मेरा करियर भी सेंसेक्स का ग्राफ बन कर रह गया.
 
 
अभ्यर्थी नौकरी जाने की पीड़ा-3
अजय पहली बार नौकरी ढूँढने के 'साइड इफेक्ट' से रू-ब-रू हुए.
 
 
अजय शर्मा नौकरी जाने की पीड़ा-2
जब अजय शर्मा को नौकरी से निकाला गया तो उनकी पत्नी लोन लेने वाली थीं.
 
 
अजय शर्मा नौकरी जाने की पीड़ा-1
दोपहर बाद बॉस ने बुलाया और नौकरी से हटाने का फ़ैसला सुना डाला.
 
 
आपकी राय..
मंदी के दौर में कंपनियों से लोगों की छंटनी का क्या कोई विकल्प है?
 
 
आउटसोर्सिंग नौकरी गँवाने की पीड़ा
बचत शून्य और ऊपर से मंदी की मार. ऐसे में नौकरी गँवाने की पीड़ा असहनीय है.
 
 
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