Mahadev App: दुबई में खूब कर ली मौज, अब भारतीय जेल में कटेंगी सौरभ चंद्राकर की रातें!

महादेव ऑनलाइन सट्टेबाजी ऐप के प्रमोटर सौरभ चंद्राकर और रवि उप्पल को भारत लाने के प्रयास तेज हो गए हैं.

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Thursday, 28 December, 2023
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दुबई (Dubai) को अपना ठिकाना बने चुके महादेव सट्टेबाजी ऐप (Mahadev Betting App) के मुख्य आरोपी सौरभ चंद्राकर (Saurabh Chandrakar) के 'अच्छे दिन' खत्म होने वाले हैं. प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने सौरभ चंद्राकर और उसके राइटहैंड रवि उप्पल को संयुक्त अरब अमीरात से भारत लाने के प्रयास तेज कर दिए हैं. उप्पल को हाल ही में दुबई पुलिस ने गिरफ्तार किया था और फिलहाल वह जेल में है. जबकि, चंद्राकर को घर में नजरबंद कर दिया गया है. भारत में दोनों ही करीब 6000 करोड़ रुपए के लेनदेन से जुड़े अवैध सट्टेबाजी और मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में आरोपी हैं.

इस तरह पकड़ा गया उप्पल
मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया है कि ED के साथ-साथ कई भारतीय जांच एजेंसियां दोनों आरोपियों को भारत लाने के लिए कूटनीति विकल्पों पर काम कर रही हैं. ईडी मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में जल्द ही नया आरोपपत्र दायर कर सकती है. बता दें कि ED के कहने पर ही इंटरपोल ने रवि उप्पल के खिलाफ रेड नोटिस जारी किया था, जिसपर कार्रवाई करते हुए दुबई पुलिस ने उसे दबोच लिया था. इसके अलावा, दुबई पुलिस ने चंद्राकर के ठिकाने के बारे में ED को सूचित करके उसे नजरबंद किया हुआ है. माना जा रहा है कि दोनों ही आरोपियों को जल्द भारत लाया जा सकता है. इसके लिए कूटनीतिक प्रयास तेज हो गए हैं.

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UAE से चल रहा था कारोबार
इसी साल अक्टूबर में छत्तीसगढ़ की एक विशेष अदालत के आदेश पर ऑनलाइन सट्टेबाजी प्लेटफॉर्म के प्रमोटर सौरभ चंद्राकर के खिलाफ केंद्रीय जांच एजेंसी ने मनी लॉन्ड्रिंग की जांच शुरू की थी. ED का कहना है कि सौरभ चंद्राकर और रवि उप्पल संयुक्त अरब अमीरात स्थित अपने हेड ऑफिस से महादेव सट्टेबाजी ऐप के जरिए मनी लॉन्ड्रिंग और हवाला कारोबार में संलग्न थे. इस मामले में दोंनों पर 6000 करोड़ की मनी लॉड्रिंग का आरोप है. गौरतलब है कि महादेव ऐप एक ऑनलाइन सट्टेबाजी प्लेटफॉर्म है, जहां पोकर, कार्ड गेम, बैडमिंटन, टेनिस, फुटबॉल और क्रिकेट जैसे विभिन्न खेलों दांव लगाया जाता है. 

भारत में बैन है महादेव ऐप
सौरभ चंद्राकार और रवि उप्पल ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर महादेव बेटिंग ऐप तैयार किया है. यह सट्टेबाजी के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराता है. इसे भारत में बैन कर दिया गया है, लेकिन लेकिन अन्य देशों में यह चल रहा है. महादेव बेटिंग ऐप पर यूजर्स कार्ड, पोकर आदि गेम खेलते थे. आरोप है कि इसकी मदद से लोग क्रिकेट, बैडमिंटन, फुटबॉल जैसे खेलों के अलावा चुनाव पर भी सट्टेबाजी करते हैं. ED यानी प्रवर्तन निदेशालय ने अपनी जांच में पाया है कि ऐप से जुड़े सबसे ज्यादा खाते छत्तीसगढ़ में खुले हैं. इसके बाद से BJP लगातार भूपेश बघेल को निशाना बना रही थी और संभवतः इसी के चलते उन्हें सत्ता से जाना पड़ा. बताया जाता है कि मूलरूप से छत्तीसगढ़ का रखने वाला चंद्राकर पहले रायपुर में एक जूस सेंटर चलाता था.


Jaypee Group को झटका, कर्ज में डूबी इस कंपनी के बारे में आई ये बड़ी खबर

नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल ने जयप्रकाश एसोसिएट्स के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने को मंजूरी दे दी है.

Last Modified:
Tuesday, 04 June, 2024
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जेपी समूह (Jaypee Group) की प्रमुख कंपनी जयप्रकाश एसोसिएट्स (Jaiprakash Associates) को बड़ा झटका लगा है. नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) ने कंपनी के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने की मंजूरी दे दी है. आईसीआईसीआई बैंक की ओर से करीब 6 साल पहले इस संबंध में एक याचिका दायर की गई थी, जिस पर अब मंजूरी मिल गई है. जयप्रकाश एसोसिएट्स कंस्ट्रक्शन, सीमेंट और हॉस्पिटेलिटी सेक्टर से जुड़ी है. कंपनी कर्ज के बोझ तले दबी है और करीब 3 हजार करोड़ रुपए चुकाने में नाकाम रही है.  

कर्ज घटाने की कोशिश
जेपी ग्रुप की प्रमुख कंपनी जयप्रकाश एसोसिएट्स ने अपना कर्ज घटाने की कई कोशिशें की हैं. इसके तहत पिछले कुछ वर्षों में कंपनी अपने कई सीमेंट प्लांट्स बेच चुकी है. आईसीआईसीआई बैंक ने बकाया का भुगतान नहीं होने पर NCLT में कंपनी के खिलाफ याचिका दायर की थी. करीब छह सालों के बाद अब जाकर जयप्रकाश एसोसिएट्स के विरुद्ध दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने को मंजूरी मिली है. NCLT का यह फैसला जेपी समूह की इस कंपनी के लिए बड़े झटके की तरह है, क्योंकि इससे डालमिया भारत ग्रुप के साथ उसकी एक डील लटक सकती है.

विलय को भी किया खारिज   
एक रिपोर्ट के अनुसार, डालमिया भारत समूह द्वारा जयप्रकाश एसोसिएट्स की सीमेंट, क्लिंकर और बिजली यूनिट्स को 5,666 करोड़ रुपए के मूल्य पर अधिग्रहित किया जाना था. लेकिन दिवालिया प्रक्रिया की मंजूरी मिलने से अब इस डील पर संशय के बादल मंडरा रहे हैं. NCLT ने जेपी इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट लिमिटेड (Jaypee Infrastructure) के साथ जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड के विलय को भी खारिज कर दिया है. बता दें कि सितंबर, 2018 में ICICI बैंक ने जयप्रकाश एसोसिएट्स के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने की अर्जी लगाई थी. इसी तरह, SBI ने भी 15 सितंबर, 2022 तक 6,893.15 करोड़ रुपए के भुगतान में चूक का दावा करते हुए कंपनी के खिलाफ NCLT का दरवाजा खटखटाया था.

शेयर में आई बड़ी गिरावट
जेपी ग्रुप की कई कंपनियां इस समय दिवालिया कार्यवाही का सामना कर रही हैं, जिनमें सीमेंट कॉरपोरेशन और जेपी इंफ्राटेक भी शामिल हैं. ट्रिब्यूनल ने इससे पहले मुंबई के सुरक्षा ग्रुप को नोएडा स्थित जेपी ग्रुप के 9 प्रोजेक्ट को खरीदने की मंजूरी दे दी थी. वहीं, Jaiprakash Associates Limited के शेयर की बात करें, तो आज इनमें बड़ी गिरावट देखने को मिल रही है. खबर लिखे जाने तक यह करीब 10 प्रतिशत के नुकसान के साथ 13.35 रुपए पर कारोबार कर रहे थे. 


बड़े हमले की साजिश नाकाम, आखिर सलमान के पीछे क्यों पड़ा है लॉरेंस बिश्नोई गैंग?

मुंबई पुलिस ने चार लोगों को गिरफ्तार किया है, जो सलमान की कार पर हमले की योजना बना रहे थे.

Last Modified:
Saturday, 01 June, 2024
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बॉलीवुड एक्टर सलमान खान (Salman Khan) लंबे समय से लॉरेंस बिश्नोई गैंग (Lawrence Bishnoi Gang) के निशाने पर हैं. मुंबई पुलिस ने इस गैंग के चार और लोगों को गिरफ्तार किया है, जो पनवेल में सलमान की कार पर अटैक करने की योजना बना रहे थे. गिरफ्त में आए गुर्गों की पहचान पहचान धनंजय उर्फ अजय कश्यप, गौरव भाटिया उर्फ न्हाई, वासपी खान उर्फ ​​वसीम चिकना और जीशान खान उर्फ जावेद खान के रूप में हुई है. पुलिस अब तक लॉरेंस बिश्नोई, अनमोल बिश्नोई, गोल्डी बराड़ सहित कुल 18 लोगों के खिलाफ FIR दर्ज कर चुकी है.

PAK से आने थे हथियार 
सलमान खान पर काफी खतरनाक अटैक की योजना बनाई गई थी. इसके लिए खासतौर पर पाकिस्तान से AK-47, M-16 और AK-92 मंगवाए जाने थे. पकडे गए आरोपियों ने सलमान के घर, फार्म हाउस और कई शूटिंग स्पॉट्स की रेकी भी की थी. पुलिस को उनके मोबाइल से ऐसे कई वीडियो मिले हैं. पुलिस को खबर मिली थी कि लॉरेंस बिश्नोई और संपत नेहरा गैंग के करीब 60 से 70 गुर्गे सलमान खान पर नजर रखे हुए हैं. बिश्नोई गैंग नाबालिगों के जरिए सलमान पर अटैक करने का प्लान बना रहा है. वारदात को अंजाम देने के बाद हमलावरों को बोट के जरिए कन्याकुमारी से श्रीलंका भगाने की भी योजना थी. 

14 अप्रैल को हुई थी फायरिंग 
इससे पहले, 14 अप्रैल को सलमान खान के बांद्रा स्थित गैलेक्सी अपार्टमेंट के सामने सुबह 5 बजे फायरिंग हुई थी. दो बाइकसवार हमलावरों ने 5 राउंड गोली चलाई थी. फायरिंग के समय सलमान अपने घर में ही थे. लॉरेंस के भाई अनमोल बिश्नोई ने सोशल मीडिया पर इस वारदात की जिम्मेदारी ली थी. हमले के दो दिन बाद हमलावरों को गुजरात से गिरफ्तार किया गया था. उन्होंने पूछताछ में लॉरेंस गैंग से फायरिंग के लिए सुपारी मिलने की बात कबूल की थी. इसके बाद मुंबई क्राइम ब्रांच ने बिश्नोई भाइयों को इस केस में आरोपी बनाया. पुलिस लॉरेंस से पूछताछ की तैयारी कर रही है, जो फिलहाल गुजरात की साबरमती जेल में बंद है.

ऐसे शुरू हुई दुश्मनी
चलिए जानते हैं कि आखिर लॉरेंस बिश्नोई गैंग की सलमान से ऐसी क्या दुश्मनी है कि वो लगातार उन्हें धमका रहा है, हमले की साजिश रच रहा है.पूरे मामले को समझने के लिए कुछ साल पीछे जाना होगा. बात 1998 की है, जब सलमान खान फिल्म 'हम साथ-साथ हैं' की शूटिंग के लिए राजस्थान गए थे. इस दौरान, जोधपुर से सटे कांकाणी गांव के पास उन्होंने दो काले हिरणों का शिकार किया था. उनके साथ फिल्म के कुछ अन्य कलाकार भी मौजूद थे. जैसे ही यह खबर सामने आई बवाल मच गया. राजस्थान का बिश्नोई समाज काले हिरण को अपने परिवार का हिस्सा मानता है और वहां काले हिरण की पूजा की जाती है. इस घटना से बिश्नोई समाज बेहद नाराज हुआ और इस नाराजगी से बदले की आग भड़क गई. अप्रैल 2018 में अदालत ने सलमान खान को इस मामले में दोषी करार देते हुए 5 साल की सजा सुनाई. हालांकि, उसी दिन सलमान 50 हजार रुपए के निजी मुचलके पर जमानत लेकर बाहर आ गए. तब से सलमान खान बिश्नोई समाज के निशाने पर हैं.

वक्त बीता, लेकिन दुश्मनी कायम
साल 2023 में लॉरेंस बिश्नोई ने जेल से ही एक वीडियो जारी किया था. इस वीडियो में लॉरेंस ने धमकी देते हुए कहा था कि यदि सलमान खान ने माफी नहीं मांगी, दो अंजाम बहुत बुरा होगा. इस वीडियो को जारी करने से पहले लॉरेंस दो बार बॉलीवुड एक्टर की हत्या की साजिश रच चुका था. अब सामने आई बड़ी साजिश से यह स्पष्ट हो गया है कि मामला भले ही पुराना हो गया हो, लेकिन लॉरेंस बिश्नोई उसे अब तक भूला नहीं है. सलमान को बिश्नोई गैंग से खतरे को देखते हुए ही महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें Y+ सिक्योरिटी दी हुई है. 


इस एयर होस्टेस के कारनामे सुनकर आंखों के सामने घूम जाएगी फिल्म Crew की स्टोरी

केरल में एक एयर होस्टेज को सोने के तस्करी के आरोप में गिरफ्तार किया गया है.

Last Modified:
Friday, 31 May, 2024
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हाल ही में तब्बू, करीना कपूर और कृति सेनन की फिल्म क्रू (Crew) रिलीज हुई थी. इस फिल्म में तीनों एयर होस्टेस की भूमिका में नजर आई हैं. Crew में दिखाया गया है कि तीनों एयर होस्टेस आर्थिक परेशानियों के चलते सोने की तस्करी करने लगती हैं. वह अलग-अलग शेप में सोने को भारत से बाहर ले जाती हैं. तस्करी का सोना छिपाने के लिए कई अजीब तरीके भी आजमाती हैं. क्रू की ऑन-स्क्रीन ये स्टोरी केरल में ऑफ-स्क्रीन देखने को मिली है. यानी केरल में बिल्कुल ऐसा ही एक मामला सामने आया है.     

ऐसे छिपा रखा था 1 किलो सोना
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, केरल के कन्नूर एयरपोर्ट पर एयर इंडिया एक्सप्रेस की एक एयर होस्टेस (Cabin Crew) को सोने की तस्करी के आरोप में गिरफ्तार किया गया है. कस्टम अधिकारियों ने आरोपी से लगभग एक किलो सोना बरामद किया है. एयर होस्टेस यह सोना मस्कट से कथित तौर पर अपने प्राइवेट पार्ट में छिपाकर ला रही थी. बताया जा रहा है कि वह पहले भी कई बार ऐसे सोने की तस्करी कर चुकी है. क्रू मूवी की तरह आरोपी ने भी सोने को अलग शेप में ढाला हुआ था, ताकि वह जांच अधिकारियों को मात दे सके. 

ऐसे सामने आया कारनामा
आरोपी एयर होस्टेस की पहचान कोलकाता निवासी सुरभि खातून के रूप में हुई है और उसे 14 दिनों की रिमांड पर भेजा गया है. सुरभि मस्कट से कन्नूर आ रही एयर इंडिया एक्सप्रेस फ्लाइट की केबिन क्रू मेंबर थी. क्रू फिल्म में तीनों एयर होस्टेस के कारनामों की पोल एक खुफिया जानकारी के आधार पर खुलती है. खातून के साथ भी ऐसा ही हुआ है. जानकारी के अनुसार, कस्टम विभाग को खबर मिली थी कि कोई एयर होस्टेज सोने की तस्करी कर रही है, इसी आधार पर जब सुरभि खातून की तलाशी ली गई तो सभी हैरान रह गए.  

अपनी तरह का पहला मामला
आरोपी एयर होस्टेस ने सोने को बेहद अजीब आकार में ढालकर अपने प्राइवेट में पार्ट में छिपा रखा था. कहा जा रहा है कि भारत में यह पहला मामला है, जब किसी एयरलाइन के चालक दल का कोई सदस्य इस तरह सोना छिपाकर तस्करी करने के आरोप में पकड़ा गया है. सुरभि खातून के कारनामों को देखकर लगता है कि या तो वो फिल्म क्रू से ज्यादा इंस्पायर थीं या फिर बाय चांस फिल्म उनकी कहानी पर बन गई. खैर, जो भी हो दोनों ही कहानियों से एक ही सीख मिलती है कि बुरे काम का नतीजा बुरा ही होता है.   
 


भारत में Insolvency And Bankruptcy Code, 2016 के तहत बिना कर्ज वाली कंपनी का अधिग्रहण करना है आसान, जानिए कैसे?

IBC के प्रावधानों के अनुसार कोई भी व्यक्ति भारत में किसी भी क्षेत्र में और किसी भी सेक्टर की बिना कर्ज वाली कंपनी प्राप्त कर सकता है, बशर्ते कि कोई कॉर्पोरेट देनदार CIRP या लिक्विडेशन के तहत उपलब्ध हो.

Last Modified:
Friday, 31 May, 2024
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दुनिया में कहीं भी, जहां कानून का शासन है, एक कर्ज मुक्त (जीरो डेब्ट) कंपनी को अधिग्रहित करना भारत में दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2016 ("IBC" या "संहिता" या "कोड") के प्रावधानों के तहत जितना आसान और सहज है, उतना कहीं नहीं है. यह उन कंपनियों और व्यक्तियों के लिए एक बेहतरीन अवसर है जिनके पास काफी पैसा है. वे कंपनियों को चालू स्थिति में उनकी वास्तविक कीमत से कम में, लगभग लिक्विडेशन कॉस्ट पर खरीद सकते हैं, और इस तरह किसी भी उपयुक्त बिजनेस एरिया और इलाके में एक नई कंपनी स्थापित करने के लिए समय, संसाधन और ट्रांजिशन पीरियड को बचा सकते हैं. 

भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने Innoventive Industries Ltd. बनाम ICICI Bank & Anr. - (2018) 1 SCC 407 मामले में यह निर्णय लिया कि संहिता की योजना (कॉर्पोरेट देनदार के संदर्भ में, जिसका अर्थ है एक कॉर्पोरेट व्यक्ति जो किसी व्यक्ति का कर्जदार है जैसा कि IBC के तहत परिभाषित है) यह सुनिश्चित करना है कि जब एक चूक होती है, जिसका मतलब है कि एक कर्ज देय हो जाता है और इसका भुगतान नहीं किया जाता है, तो दिवाला समाधान प्रक्रिया शुरू हो जाती है. धारा 3(12) में चूक को बहुत व्यापक रूप में परिभाषित किया गया है, जिसका मतलब है कि कर्ज का भुगतान नहीं होना, चाहे उसका कुछ हिस्सा ही क्यों न हो या एक किस्त राशि ही क्यों न हो. "कर्ज" का अर्थ जानने के लिए हमें धारा 3(11) पर जाना होगा, जो बताती है कि कर्ज का मतलब "दावा" के संबंध में एक दायित्व या बाध्यता है और "दावा" का मतलब जानने के लिए हमें धारा 3(6) पर वापस जाना होगा जो "दावा" को भुगतान के अधिकार के रूप में परिभाषित करती है, चाहे वह विवादित हो. कोड तब लागू हो जाता है जब चूक की राशि एक करोड़ रुपये या अधिक होती है (धारा 4).

कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया को कॉर्पोरेट देनदार (corporate debtor), वित्तीय लेनदार (financial creditor) या संचालन लेनदार (operational creditor) द्वारा शुरू किया जा सकता है. संहिता में वित्तीय लेनदार और संचालन लेनदार के कर्ज में अंतर किया गया है. वित्तीय लेनदार को धारा 5(7) के तहत एक ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है जिसे वित्तीय कर्ज देना होता है और धारा 5(8) में वित्तीय कर्ज को परिभाषित किया गया है जिसका मतलब है कि यह पैसा समय के मूल्य के लिए दिया जाता है. इसके विपरीत, संचालन लेनदार का मतलब है वह व्यक्ति जिसे संचालन कर्ज देना होता है और धारा 5(21) के तहत संचालन कर्ज का मतलब वस्तुओं या सेवाओं के प्रावधान के संबंध में एक दावे से है.

"जब वित्तीय लेनदार इस प्रक्रिया को शुरू करता है, तो धारा 7 महत्वपूर्ण हो जाती है. धारा 7(1) के स्पष्टीकरण के तहत, एक चूक किसी भी वित्तीय लेनदार के लिए देय वित्तीय कर्ज के संबंध में होती है - यह कर्ज आवेदक वित्तीय लेनदार के लिए देय नहीं होना चाहिए. धारा 7(2) के तहत, धारा 7(1) के तहत एक आवेदन उस प्रकार और तरीके में किया जाना चाहिए जो निर्धारित किया गया है, जो हमें दिवाला और दिवालियापन (अधिनिर्णायक प्राधिकारी के लिए आवेदन) नियम, 2016 की ओर ले जाता है। नियम 4 के तहत, आवेदन वित्तीय लेनदार द्वारा फॉर्म 1 में किया जाता है जिसमें आवश्यक दस्तावेज और रिकॉर्ड संलग्न होते हैं। फॉर्म 1 एक विस्तृत फॉर्म है जिसमें 5 भाग होते हैं, जिसमें भाग I में आवेदक के विवरण, भाग II में कॉर्पोरेट देनदार के विवरण, भाग III में प्रस्तावित अंतरिम समाधान पेशेवर के विवरण, भाग IV में वित्तीय कर्ज के विवरण और भाग V में चूक के दस्तावेज, रिकॉर्ड और साक्ष्य होते हैं.

नियम 4(3) के तहत, आवेदक को आवेदन की एक प्रति अधिनिर्णायक प्राधिकारी (Adjudicating Authority) को पंजीकृत डाक या स्पीड पोस्ट द्वारा कॉर्पोरेट देनदार के पंजीकृत कार्यालय में भेजनी होती है. अधिनिर्णायक प्राधिकारी को जानकारी उपयोगिता के रिकॉर्ड या वित्तीय लेनदार द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य के आधार पर चूक के अस्तित्व को 14 दिनों के भीतर सुनिश्चित करना होता है. यह धारा 7(5) के चरण पर है, जहां अधिनिर्णायक प्राधिकारी को यह सुनिश्चित करना होता है कि चूक हुई है, कि कॉर्पोरेट देनदार यह बता सकता है कि चूक नहीं हुई है, जिसका मतलब है कि "कर्ज", जिसमें विवादित दावा भी शामिल हो सकता है, देय नहीं है. कर्ज देय नहीं हो सकता यदि यह कानूनी या तथ्यात्मक रूप से भुगतान योग्य नहीं है. जैसे ही अधिनिर्णायक प्राधिकारी यह सुनिश्चित करता है कि चूक हुई है, आवेदन को स्वीकार करना अनिवार्य होता है, जब तक कि यह अधूरा न हो, इस स्थिति में वह आवेदक को 7 दिनों के भीतर नोटिस प्राप्त होने के बाद दोष को सुधारने के लिए नोटिस दे सकता है. उप-धारा (7) के तहत, अधिनिर्णायक प्राधिकारी फिर आदेश को वित्तीय लेनदार और कॉर्पोरेट देनदार को आवेदन के स्वीकार या अस्वीकार करने के 7 दिनों के भीतर संप्रेषित करेगा.

धारा 7 की योजना धारा 8 की योजना के विपरीत है, जहां एक संचालन लेनदार को चूक होने पर पहले संहिता की धारा 8(1) में दिए गए तरीके से संचालन देनदार को बिना भुगतान किए गए कर्ज का मांग नोटिस देना होता है. धारा 8(2) के तहत, कॉर्पोरेट देनदार मांग नोटिस या उप-धारा (1) में उल्लिखित चालान की प्राप्ति के 10 दिनों के भीतर, संचालन लेनदार को विवाद की उपस्थिति या किसी मुकदमे या मध्यस्थता कार्यवाही की लंबितता का रिकॉर्ड ला सकता है, जो पहले से मौजूद हो, यानी कि ऐसा नोटिस या चालान प्राप्त होने से पहले. जैसे ही ऐसे विवाद का अस्तित्व होता है, संचालन लेनदार संहिता के प्रभाव से बाहर हो जाता है. 

"दूसरी ओर, जैसा कि हमने देखा है, वित्तीय कर्ज की चूक करने वाले कॉर्पोरेट देनदार के मामले में, अधिनिर्णायक प्राधिकारी को केवल सूचना उपयोगिता के रिकॉर्ड या वित्तीय लेनदार द्वारा प्रस्तुत अन्य साक्ष्य को देखकर यह सुनिश्चित करना होता है कि चूक हुई है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कर्ज विवादित है, जब तक कि कर्ज 'देय' है, यानी कानून द्वारा रोके जाने तक या इसे भविष्य की तारीख में भुगतान के रूप में देय नहीं किया गया है. केवल तभी जब यह अधिनिर्णायक प्राधिकारी की संतुष्टि के लिए साबित हो जाता है कि चूक हुई है, अधिनिर्णायक प्राधिकारी आवेदन को अस्वीकार कर सकता है और नहीं भी. 

दिवाला समाधान प्रक्रिया का बाकी हिस्सा भी बहुत महत्वपूर्ण है. पूरी प्रक्रिया को धारा 12 के तहत आवेदन के स्वीकार किए जाने की तारीख से 180 दिनों के भीतर पूरा किया जाना है और इसे केवल 180 दिनों से आगे 90 दिनों तक ही बढ़ाया जा सकता है यदि ऋणदाताओं की समिति द्वारा 66% वोटिंग शेयरों के आवश्यक प्रतिशत के मतदान से ऐसा निर्णय लिया जाता है. यह देखा जा सकता है कि समय महत्वपूर्ण है यह देखने के लिए कि क्या कॉर्पोरेट इकाई को अपने पैरों पर खड़ा किया जा सकता है, ताकि लिक्विडेशन से बचा जा सके, अधिकतम 330 दिनों की अवधि के भीतर.

जैसे ही आवेदन स्वीकार किया जाता है, धारा 14 के तहत अधिनिर्णायक प्राधिकारी द्वारा अधिस्थगन (Moratorium) की घोषणा की जाती है और एक सार्वजनिक घोषणा की जाती है जिसमें, अन्य बातों के अलावा, दावों की प्रस्तुति की अंतिम तिथि और अंतरिम समाधान पेशेवर के विवरण शामिल होते हैं, जिसे कॉर्पोरेट देनदार के प्रबंधन के साथ लगाया जाता है और दावों को प्राप्त करने के लिए जिम्मेदार होता है. धारा 17 के तहत, कॉर्पोरेट देनदार का पूर्व प्रबंधन एक अंतरिम समाधान पेशेवर ("IRP") में निहित होता है जो संहिता के अध्याय IV के तहत पंजीकृत एक प्रशिक्षित व्यक्ति होता है. यह अंतरिम समाधान पेशेवर अब कॉर्पोरेट देनदार के संचालन को एक चल रहे व्यवसाय के रूप में ऋणदाताओं की समिति ("CoC") के निर्देशों के तहत प्रबंधित करता है, जिसे अधिनियम की धारा 21 के तहत नियुक्त किया गया है. इस समिति द्वारा निर्णय कम से कम 66% वोटिंग शेयरों के वोट से लिए जाते हैं. धारा 28 के तहत, एक समाधान पेशेवर, जो एक अंतरिम समाधान पेशेवर है जिसे समाधान प्रक्रिया को पूरा करने के लिए नियुक्त किया गया है, फिर उसे वित्त जुटाने, सुरक्षा हित बनाने, आदि के लिए व्यापक शक्तियां दी जाती हैं, ऋणदाताओं की समिति की पूर्व स्वीकृति के अधीन.

धारा 30 के तहत, कोई भी व्यक्ति जो कॉर्पोरेट इकाई को फिर से खड़ा करने में रुचि रखता है, समाधान पेशेवर (Resolution Professional) को एक समाधान योजना प्रस्तुत कर सकता है, जो एक सूचना ज्ञापन के आधार पर तैयार की जाती है. इस योजना में दिवाला समाधान प्रक्रिया की लागत का भुगतान, योजना की स्वीकृति के बाद कॉर्पोरेट देनदार के मामलों का प्रबंधन और योजना का कार्यान्वयन और पर्यवेक्षण शामिल होना चाहिए. केवल तभी जब इस योजना को वित्तीय लेनदारों के वोटिंग शेयरों के कम से कम 66% वोट से स्वीकृत किया जाता है और अधिनिर्णायक प्राधिकारी संतुष्ट होता है कि स्वीकृत योजना धारा 30 में उल्लिखित कानूनी आवश्यकताओं को पूरा करती है, वह अंततः इस योजना को स्वीकृत करता है, जो फिर कॉर्पोरेट देनदार और उसके कर्मचारियों, सदस्यों, लेनदारों, गारंटरों और अन्य हितधारकों पर बाध्यकारी होती है. 

महत्वपूर्ण रूप से और यह विषय पर पहले के कानूनों से एक बड़ा प्रस्थान है, जैसे ही अधिनिर्णायक प्राधिकारी समाधान योजना को स्वीकृत करता है, धारा 14 के तहत प्राधिकारी द्वारा पारित अधिस्थगन आदेश का प्रभाव समाप्त हो जाता है. इसलिए संहिता की योजना एक प्रयास करने के लिए है, पूर्व प्रबंधन को अपने अधिकारों से हटाकर और इसे एक पेशेवर एजेंसी (IRP या RP) में निवेश करने के लिए, कॉर्पोरेट इकाई के व्यवसाय को एक चल रहे व्यवसाय के रूप में जारी रखने के लिए जब तक एक समाधान योजना तैयार नहीं हो जाती, इस घटना में प्रबंधन को योजना के तहत सौंप दिया जाता है ताकि कॉर्पोरेट इकाई अपने कर्ज का भुगतान कर सके और फिर से अपने पैरों पर खड़ी हो सके. यह सब 330 दिनों की अवधि के भीतर किया जाना है अन्यथा लिक्विडेशन प्रक्रिया शुरू हो जाती है.

उपरोक्त प्रक्रिया और योजना से यह स्पष्ट है कि एक समाधान आवेदनकर्ता (IBC की धारा 25) नीलामी में हिस्सा लेकर यदि सफल होता है, तो समाधान पेशेवर (Resolution Professional) से कॉर्पोरेट देनदार को ऋणदाताओं की समिति की स्वीकृति के साथ खरीद सकता है। एक बार जब समाधान योजना (IBC की धारा 26) को स्वीकृत और अनुमोदित कर दी जाती है और अधिनिर्णायक प्राधिकारी {IBC की धारा 5(1)} के तहत धारा 31 के तहत स्वीकृत कर दी जाती है, तो यह सभी लेनदारों, शेयरधारकों और सभी हितधारकों पर अप्लाईड होती है, और सफल समाधान आवेदनकर्ता कॉर्पोरेट देनदार का पूर्ण मालिक बन जाता है, जिसमें इसके सभी संपत्तियाँ, कर्मचारी, भूमि/इमारत, संयंत्र और मशीनरी और सभी चल, टेंजिबल और इनटेंजिबल असेट्स और अधिकार शामिल होते हैं.

IBC में कोई विशिष्ट धारा नहीं है जो यह घोषित करती हो कि समाधान योजना के अधिनिर्णायक प्राधिकारी (राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण की उपयुक्त बेंच) द्वारा स्वीकृत किए जाने पर समाधान आवेदनकर्ता द्वारा कॉर्पोरेट देनदार की सफल अधिग्रहण पर, कॉर्पोरेट देनदार के सभी कर्ज और दावे भुगतान/विचार के भुगतान या वित्तीय लेनदारों/संचालन लेनदारों को स्वीकृत समाधान योजना के अनुसार संतुष्ट हो जाएंगे. हालांकि, इस मुद्दे पर कानून को भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विभिन्न महत्वपूर्ण निर्णयों के माध्यम से अंतिम रूप से स्थापित किया गया है और यह IBC के उद्देश्यों और धारा 31 के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए है. 

माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने, Committee of Creditors of Essar Steel India Ltd. (through authorized signatory) v. Satish Kumar Gupta & Ors. - (2020) 8 SCC 531 मामले में यह निर्णय लिया कि जब संकटग्रस्त संपत्तियों का समाधान होता है, तो IBC बहुत स्पष्ट है. एक सफल समाधान आवेदनकर्ता अचानक पेंडिंग क्लेम का सामना नहीं कर सकता है जब उसकी समाधान योजना को स्वीकृत कर लिया गया है क्योंकि यह अनिश्चितता उत्पन्न करेगा कि संभावित समाधान आवेदनकर्ता को कितना भुगतान करना होगा जो कॉर्पोरेट देनदार का व्यवसाय सफलतापूर्वक अधिग्रहण करता है. सभी दावों को समाधान पेशेवर के पास प्रस्तुत और निर्णय किया जाना चाहिए ताकि संभावित समाधान आवेदनकर्ता को ठीक से पता हो कि क्या भुगतान करना है ताकि वह फिर कॉर्पोरेट देनदार का व्यवसाय अधिग्रहण और चला सके. सफल समाधान आवेदनकर्ता इसे एक नए सिरे से करता है, जैसा कि हमने ऊपर बताया है.

इसमें कोई संदेह नहीं है कि IBC एक फायदेमंद कानून है जो कॉर्पोरेट देनदार को फिर से अपने पैरों पर खड़ा करता है, केवल लेनदारों के लिए वसूली कानून नहीं है. इसलिए, कॉर्पोरेट देनदार के हितों को इसके प्रबंधकों, जो प्रबंधन में होते हैं उनसे अलग कर दिया गया है. इस प्रकार, IBC के तहत समाधान प्रक्रिया का उद्देश्य कॉर्पोरेट देनदार की संकटग्रस्त संपत्तियों के लिए एक समाधान खोजना है. यह प्रक्रिया कॉर्पोरेट देनदार की संपत्तियों के मूल्य को अधिकतम करती है और दिवाला समाधान प्रक्रिया के दौरान उन्हें संरक्षित और सुरक्षित रखती है. अंतिम उद्देश्य सभी हितधारकों के लिए एक लाभकारी समाधान खोजना है, जिसमें लेनदार, कॉर्पोरेट देनदार और समग्र रूप से अर्थव्यवस्था शामिल हैं. इसलिए, यह आवश्यक है कि दिवाला आरंभ तिथि के समय कॉर्पोरेट देनदार के खिलाफ सभी दावों को समाधान पेशेवर के पास प्रस्तुत किया जाए और उनका निर्णय लिया जाए ताकि सफल समाधान आवेदनकर्ता कॉर्पोरेट देनदार को एक नए सिरे से संभाल सके. 

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि IBC एक व्यापक कोड है, जिसका उद्देश्य भारत में दिवाला और दिवालियापन संकट को हल करना है. कोड के तहत प्रस्तावित प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि कॉर्पोरेट देनदार को पुनर्जीवित किया जाए और सभी पिछले दायित्वों के साथ उसे फिर से अपने पैरों पर खड़ा किया जाए और कॉर्पोरेट देनदार का प्रबंधन और नियंत्रण सफल समाधान आवेदनकर्ता को सौंप दिया जाए जो कॉर्पोरेट देनदार को एक साफ स्लेट पर संभाल सके. इसलिए, सफल समाधान आवेदनकर्ता को समाधान योजना को कार्यान्वित करने का एक उचित मौका दिया जाना चाहिए. समाधान प्रक्रिया को बाधित करने का कोई भी प्रयास उन दावों को उठाकर जो समाधान पेशेवर के पास प्रस्तुत नहीं किए गए हैं और उनका निर्णय नहीं लिया गया है, पूरी प्रक्रिया को कमजोर करेगा और IBC के उद्देश्य को विफल कर देगा. 

हम पहले ही देख चुके हैं कि IBC सभी हितधारकों पर लागू होता है, जिसमें सरकारी प्राधिकरण भी शामिल हैं. इसका कारण यह है कि IBC का अंतिम उद्देश्य कॉर्पोरेट देनदार की दिवाला को हल करना और कॉर्पोरेट देनदार को फिर से अपने पैरों पर खड़ा करना और पिछले दायित्वों से मुक्त करना है. समाधान योजना, एक बार स्वीकृत होने के बाद, सभी हितधारकों पर बाध्यकारी होती है, जिसमें वे सरकारी प्राधिकरण भी शामिल हैं जिनके दावे समाधान पेशेवर द्वारा निर्णय नहीं लिए गए हैं, क्योंकि ये दावे अंतिम समाधान योजना का हिस्सा नहीं होते हैं जिसे अधिनिर्णायक प्राधिकारी द्वारा स्वीकृत किया गया है. ऐसे दावे समाप्त हो जाते हैं, और दावेदारों को कॉर्पोरेट देनदार के खिलाफ कोई और रास्ता नहीं मिलता है.

यह भी महत्वपूर्ण है कि जब लेनदारों की समिति द्वारा समाधान योजना स्वीकृत हो जाती है और इसे अधिनिर्णायक प्राधिकारी द्वारा स्वीकृत होने से पहले, कुछ श्रेणी के लेनदारों (जैसे कि संचालन लेनदारों) को उनके बकाया राशि की पूरी छूट नहीं मिल सकती है. यह लेनदारों की समिति का कर्तव्य है कि सभी हितधारकों के हितों का ध्यान रखा जाए और संपत्तियों के मूल्य को अधिकतम किया जाए ताकि बकाया राशि का अधिकतम भुगतान किया जा सके. सफल समाधान आवेदनकर्ता को कॉर्पोरेट देनदार का व्यवसाय एक नई शुरुआत के साथ चलाना चाहिए, पिछले दायित्वों से मुक्त होकर, ताकि कंपनी को पुनर्जीवित किया जा सके और उसे निरंतर बनाए रखा जा सके.

एक बार जब समाधान योजना को अधिनिर्णायक प्राधिकारी द्वारा स्वीकृत कर लिया जाता है, तो जो दावे समाधान योजना का हिस्सा नहीं हैं वे समाप्त हो जाएंगे. कोई भी व्यक्ति किसी ऐसे दावे के बारे में कोई कार्यवाही शुरू या जारी रखने का हकदार नहीं होगा जो समाधान योजना का हिस्सा नहीं है. इन दावों के समाप्त होने में केंद्रीय सरकार, किसी राज्य सरकार या किसी स्थानीय प्राधिकरण के साथ-साथ अन्य सभी हितधारक, जैसे कि कर्मचारी, सदस्य, लेनदार, और गारंटर शामिल हैं. समाधान योजना की स्वीकृति और सभी हितधारकों पर इसके बाध्यकारी प्रभाव, जिसमें दावों का समाप्त होना भी शामिल है, यह सुनिश्चित करते हैं कि सफल समाधान आवेदनकर्ता कॉर्पोरेट देनदार का व्यवसाय बिना किसी बाधा या पिछले दायित्वों के कारण होने वाले व्यवधानों के चला सके. 

धारा 31 IBC में 2019 का संशोधन स्पष्टीकरणात्मक और घोषणात्मक प्रकृति का है और इसलिए इसका प्रभाव पूर्ववर्ती होगा. इस प्रकार, जब NCLT द्वारा समाधान योजना स्वीकृत हो जाती है, तो जो दावे समाधान योजना का हिस्सा नहीं हैं, वे समाप्त हो जाएंगे और उनसे संबंधित कार्यवाहियां समाप्त हो जाएंगी. चूंकि याचिका का विषय वे कार्यवाहियां हैं जो योजना की स्वीकृति से पहले के उत्तरदाताओं के दावों से संबंधित हैं, वे जारी नहीं रह सकतीं. समान रूप से, जो दावे समाधान योजना का हिस्सा नहीं हैं, वे समाप्त हो जाएंगे. 

Tata Power Western Odisha Distribution Ltd. (TPWODL) & Anr. v. Jagannath Sponge Pvt. Ltd. Director - Civil Appeal No. 5556/2023 के मामले में, माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने बिजली आपूर्ति कंपनी द्वारा पिछले बकायों के दावे को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और कहा कि "टाटा पावर वेस्टर्न ओडिशा डिस्ट्रीब्यूशन लिमिटेड बिजली कनेक्शन देने के लिए बकाया राशि का भुगतान कराने पर जोर नहीं दे सकता, जो कि जलप्रपात तंत्र (waterfall mechanism) के अनुसार भुगतान की जानी चाहिए. यदि सफल समाधान आवेदनकर्ता को कॉर्पोरेट देनदार द्वारा भुगतान किए जाने वाले बकायों का भुगतान करने के लिए कहा जाए, तो साफ स्लेट सिद्धांत निष्फल हो जाएगा. कॉर्पोरेट देनदार के बकायों का भुगतान समाधान योजना में निर्धारित तरीके से किया जाना चाहिए, जैसा कि अधिनिर्णायक प्राधिकारी द्वारा स्वीकृत योजना में है. उसी सिद्धांत को Southern Power Distribution Company of Andhra Pradesh Ltd. v. Gavi Siddeswara Steels (India) Pvt. Ltd. & Anr. - SC Civil Appeal No. 5716-5717/2023 के मामले में भी बताया गया था।

Ruchi Soya Industries Ltd. & Ors. v. UOI & Ors. - (2022) 6 SCC 343 के एक अन्य मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने पहले के दृष्टिकोण की पुनः पुष्टि करते हुए कहा कि एक बार जब समाधान योजना को अधिनिर्णायक प्राधिकारी द्वारा धारा 31 की उप-धारा (1) के तहत विधिवत स्वीकृत कर लिया जाता है, तो समाधान योजना में दिए गए दावे स्थायी हो जाएंगे और कॉर्पोरेट देनदार, उसके कर्मचारी, सदस्य, लेनदार, केंद्रीय सरकार, राज्य सरकार या किसी स्थानीय प्राधिकरण, गारंटर और अन्य हितधारकों पर बाध्यकारी होंगे. समाधान योजना की स्वीकृति की तिथि पर, सभी दावे जो समाधान योजना का हिस्सा नहीं हैं, समाप्त हो जाएंगे और किसी भी व्यक्ति को ऐसे दावे के संबंध में कोई कार्यवाही शुरू या जारी रखने का हकदार नहीं होगा.

अरुण कुमार जगतरामका बनाम जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड एवं अन्य - (2021) 7 SCC 474 मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने यह दोहराया कि एक बार समाधान योजना स्वीकृत हो जाने पर यह सभी हितधारकों पर बाध्यकारी हो जाती है और इसे सभी लाभों के साथ प्रस्तुत किया जाता है, जो कि कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 230 से अलग है. धारा 31 के तहत समाधान योजना की स्वीकृति के परिणामस्वरूप साफ सलेट मिलती है, जैसा कि इस कोर्ट ने एस्सार स्टील (इंडिया) लिमिटेड (सीओसी) बनाम सतीश कुमार गुप्ता मामले में कहा है. 

105. कोड की धारा 31(1) स्पष्ट करती है कि एक बार समाधान योजना को ऋणदाताओं की समिति द्वारा स्वीकृत कर दिए जाने पर यह सभी हितधारकों, जिसमें गारंटर भी शामिल हैं, पर बाध्यकारी होगी. इसका कारण यह है कि यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि सफल समाधान आवेदक कॉर्पोरेट देनदार का व्यवसाय एक नई सलेट पर शुरू कर सके. एसबीआई बनाम वी. रामकृष्णन मामले में, इस कोर्ट ने धारा 31 का हवाला देते हुए कहा था

25. उत्तरदाताओं द्वारा धारा 31 का भी प्रबलता से हवाला दिया गया था. यह धारा केवल यह कहती है कि एक बार समाधान योजना, जो ऋणदाताओं की समिति द्वारा स्वीकृत की गई है, प्रभाव में आती है, तो यह कॉर्पोरेट देनदार और गारंटर दोनों पर बाध्यकारी होगी. इसका कारण यह है कि अन्यथा, भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 133 के तहत, बिना गारंटर की सहमति के ऋण में किए गए किसी भी परिवर्तन से गारंटर भुगतान से मुक्त हो जाएगा. वास्तव में, धारा 31(1) यह स्पष्ट करती है कि गारंटर भुगतान से बच नहीं सकता क्योंकि स्वीकृत समाधान योजना में ऐसे प्रावधान शामिल हो सकते हैं जो गारंटर द्वारा किए जाने वाले भुगतानों के बारे में हों. शायद यही कारण है कि फॉर्म 6 में संलग्नक VI(e) और नियम एवं विनियमन 36(2) के तहत व्यक्तिगत गारंटी के संबंध में जानकारी की आवश्यकता होती है. उत्तरदाताओं के दृष्टिकोण का समर्थन करने के बजाय, यह स्पष्ट है कि वास्तव में, धारा 31 एक व्यक्तिगत गारंटर को बिना किसी स्थगन के ऋणों के भुगतान के लिए बाध्य होने के पक्ष में एक और कारक है.

"धारा 31 के तहत स्वीकृत समाधान योजना का लाभ यह है कि सफल समाधान आवेदक कॉर्पोरेट देनदार का व्यवसाय "फ्रेस सलेट" पर शुरू करता है. माननीय सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न मामलों में उपरोक्त दृष्टिकोण के अनुरूप, उच्च न्यायालयों और अपीलीय प्राधिकरण (NCLAT) ने भी फ्रेस सलेट सिद्धांत का पालन करते हुए टिप्पणियां कीं, जिनमें से कुछ मामले और उनकी टिप्पणियां निम्नलिखित हैं:

i.    इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड बनाम आर्सेलर मित्तल निप्पन स्टील इंडिया लिमिटेड - 2023 SCC OnLine Del 6318 
ii.    जेएसडब्ल्यू स्टील लिमिटेड बनाम अशोक कुमार गुल्ला एवं अन्य - 2019 SCC OnLine NCLAT 854 
iii.    शापोरजी पलोनजी एंड कंपनी प्राइवेट लिमिटेड बनाम कोबरा वेस्ट पावर कंपनी लिमिटेड एवं अन्य - 2023 SCC OnLine NCLAT 968 
iv.    क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त कर्मचारी भविष्य निधि संगठन बनाम वंदना गर्ग एवं अन्य - 2021 SCC OnLine NCLAT 146 
v.    कस्टम्स एवं एक्साइज कमिश्नर - जयपुर-I बनाम अशिका कॉमर्शियल प्राइवेट लिमिटेड (आरपी राजेश कुमार अग्रवाल के माध्यम से) एवं अन्य - 2022 SCC OnLine NCLAT 1939 
vi.    अश्विनकुमार जयंतिलाल पटेल बनाम श्री संजय जितेंद्रलाल शाह एवं अन्य - 2023 SCC OnLine NCLAT 1085

हालांकि, एक बार उपरोक्त प्रक्रिया पूरी हो जाने और समाधान योजना स्वीकृत हो जाने के बाद, सफल समाधान आवेदक के खिलाफ कोई नया दावा नहीं किया जा सकता या लागू नहीं किया जा सकता. सफल समाधान आवेदक केवल उन्हीं दावों को पूरा करने के लिए बाध्य है जो स्वीकार किए गए हैं और अंततः स्वीकृत समाधान योजना का हिस्सा बने हैं. यह मुद्दा महत्वपूर्ण है क्योंकि सफल समाधान आवेदक को उन दावों का बचाव या विरोध नहीं करना चाहिए जो समाधान योजना में शामिल नहीं हैं और न ही उसे उन कार्रवाइयों का सामना करना चाहिए जो कॉर्पोरेट देनदार के कथित या स्वीकृत बकाया के संबंध में लाए जा सकते हैं जो स्वीकार नहीं किए गए थे. किसी अन्य स्थिति को अपनाने से साफ और नई सलेट सिद्धांतों का उल्लंघन होगा जो IBC के तहत समाधान प्रक्रिया को दिशा देते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने IBC के अंतर्निहित समाधान प्रक्रिया के इरादे का उल्लेख करते हुए इस पहलू को "हाइड्रा-हेडेड मॉन्स्टर" के रूप में वर्णित किया था. वास्तव में, घनश्याम मिश्रा मामले में महत्वपूर्ण रूप से यह कहा गया है कि सभी दावे जो समाधान योजना का हिस्सा नहीं हैं, वे समाप्त हो जाएंगे और कोई भी व्यक्ति ऐसे दावे के संबंध में किसी भी कार्यवाही को "शुरू या जारी" नहीं रख सकता.

"सुप्रीम कोर्ट के "Essar Steel India Limited Through Authorised Signatory" (Supra) के निर्णय से स्पष्ट है कि सफल समाधान आवेदक को अचानक "निर्णयहीन" दावों का सामना नहीं करना पड़ सकता है जब उसकी प्रस्तुत समाधान योजना को स्वीकार कर लिया गया हो, क्योंकि इससे संभावित समाधान आवेदक के द्वारा देय राशि में अनिश्चितता पैदा हो जाएगी जो कॉर्पोरेट देनदार का व्यवसाय सफलतापूर्वक लेता है. सभी दावों को समाधान पेशेवर को प्रस्तुत और निर्णयित करना होगा ताकि संभावित समाधान आवेदक को ठीक से पता हो कि उसे क्या भुगतान करना है ताकि वह कॉर्पोरेट देनदार का व्यवसाय ले सके और चला सके. यह सफल समाधान आवेदक एक नई सलेट पर करता है, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने बताया है. 

इस तथ्यात्मक परिप्रेक्ष्य में, इस अपील में विचार करने का मुख्य बिंदु यह है कि क्या अपीलकर्ता/'ऑपरेशनल क्रेडिटर' को "Fourth Dimension Solutions" (Supra) में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित अनुपात के प्रकाश में मध्यस्थता कार्यवाही को जारी रखने की अनुमति दी जा सकती है. यह मामला सीनियर वकील श्री पी. नागेश द्वारा प्रस्तुत किया गया है जो SRA का प्रतिनिधित्व करते हैं कि एक बार समाधान योजना को स्वीकृत कर लिया गया है, जैसा कि 'Ghanshyam Mishra and Sons Private Limited' (Supra), 'K. Shashidhar' बनाम 'Indian Overseas Bank & Anr.' 'Maharashtra Seamless Ltd.' बनाम 'Padamanabhan Venkatesh & Ors.' और 'Kalpraj Dharamshi & Anr.' बनाम 'Kotak Investment Advisors Ltd. & Anr.' में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित नजीर में, जो दावे समाधान योजना का हिस्सा नहीं हैं, वे समाप्त हो जाएंगे और कोई भी व्यक्ति ऐसे दावे के संबंध में कोई कार्यवाही जारी रखने का हकदार नहीं होगा. 

समाधान योजना को अनुमोदित करने के बाद, ऐसे सभी दावे जो समाधान योजना का हिस्सा नहीं हैं, समाप्त हो जाएंगे. कोई भी व्यक्ति उस दावे के संबंध में कोई कार्यवाही शुरू या जारी रखने का हकदार नहीं है जो समाधान योजना का हिस्सा नहीं है. सभी बकाया राशि, जिसमें केंद्र सरकार, किसी राज्य सरकार या किसी स्थानीय प्राधिकरण के वैधानिक बकाया शामिल हैं, यदि समाधान योजना का हिस्सा नहीं हैं, तो वे समाप्त हो जाएंगे और ऐसी बकाया राशि के संबंध में समाधान प्राधिकरण द्वारा धारा 31 के तहत स्वीकृति की तारीख से पहले की अवधि के लिए कोई कार्यवाही जारी नहीं रखी जा सकती. 

यह दर्शाता है कि समाधान योजना का हिस्सा नहीं होने वाले ऋणदाताओं के दावे समाधान योजना के स्वीकृत होते ही समाप्त हो जाते हैं. इस समाधान योजना में, कॉर्पोरेट देनदार के निदेशकों के दावों पर समाधान पेशेवर द्वारा विचार नहीं किया गया क्योंकि वे कॉर्पोरेट देनदार से संबंधित पक्ष हैं. हालांकि, एक ही समय में, CoC ने अपनी वाणिज्यिक बुद्धिमानी में उन निदेशकों के दावे को कानून के प्रावधानों के खिलाफ और ऊपर वर्णित सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को अनदेखा करते हुए आगे बढ़ाने की अनुमति दी, जबकि ऑपरेशनल क्रेडिटर्स के दावे पूरी तरह समाप्त हो गए.

निषकर्ष:

उपरोक्त निर्णयों और स्थापित कानून से यह निश्चित है कि कोई भी व्यक्ति भारत के किसी भी क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र और किसी भी क्षेत्र में बिना कर्ज वाली कंपनी प्राप्त कर सकता है, बशर्ते कि कोई कॉर्पोरेट देनदार IBC के प्रावधानों के तहत CIRP या लिक्विडेशन में हो. कॉर्पोरेट देनदार, स्वीकृत समाधान योजना के तहत सभी देनदारियों और दायित्वों, कानूनी या अन्यथा के साथ एक चालू इकाई होगी, साथ ही अन्य संबंधित लाभ भी मिलेंगे.

वास्तव में, लिक्विडेशन के दौरान भी न्यायिक प्राधिकरण अपने विवेकानुसार निर्देश दे सकता है कि एक चालू इकाई के रूप में कॉर्पोरेट देनदार का अधिग्रहण बिना किसी संभावित देनदारियों के हस्तांतरित किया जाए. जैसा कि शिव शक्ति इंटरग्लोब एक्सपोर्ट्स बनाम केटीसी फूड्स (P); कंपनी अपील (AT) (दिवालियापन) संख्या 650 का 2020 NCLAT में रखा गया है. 
 


NCLT में  ZEE MEDIA की बड़ी जीत, ट्रिब्यूनल ने मंजूर की डॉ. सुभाष चंद्रा की याचिका

एनसीएलटी ने दिवालिया कार्यवाही में रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल को बदलने की एस्सेल ग्रुप के संस्थापक डॉ. सुभाष चंद्रा की याचिका को मंजूर कर लिया है.

Last Modified:
Thursday, 30 May, 2024
BWHindia

नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल ने 27 मई को दिए अपने आदेश में तहत ZEE TV के संस्थापक डॉ. सुभाष चंद्रा की कार्यवाही में रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल (RP) को बदलने का निर्देश दिया है. ये आदेश NCLT के समक्ष डॉ. चंद्रा द्वारा दायर एक याचिका के बाद पारित किया गया है, इस याचिका में डॉ चंद्रा ने NCLT  की तरफ से नियुक्त किए गए रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल (RP) को 22 अप्रैल, 2024 के आदेश के तहत बदलने की मांग की थी.  

डॉ सुभाष चंद्रा की ओर से किया गया ये आग्रह

इस केस में पर्सनल गारंटर यानी डॉ सुभाष चंद्रा की ओर से आग्रह किया गया कि वह हजारों करोड़ रुपये के मामले में रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल की क्षमता पर भरोसा करने में असमर्थ है. साथ ही ये भी कहा गया कि था कि रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल को प्रक्रिया में पर्सनल गारंटर का मार्गदर्शन और सहायता करने की स्थिति में होना चाहिए न कि सिर्फ एक पोस्ट ऑफिस की भूमिका में होना चाहिए. कार्यवाही के दौरान, ट्रिब्यूनल को यह भी बताया गया कि पहली बैठक लोधी होटल में रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल द्वारा बुलाई गई थी और रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल के साथ एक वकील भी था, जिसे रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल ने स्वीकार किया था. 

ट्रिब्यूनल ने दिए ये निर्देश

सभी पक्षों को सुनने के बाद ट्रिब्यूनल ने माना कि IBC 2016 की धारा 105 के प्रावधानों के अनुसार कार्यों का निर्वहन करते समय रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल की भूमिका केवल पर्सनल गारंटर के लिए सलाहकार के रूप में सेवा का विस्तार करना है. जिसके बाद ट्रिब्यूनल ने रेजोल्यूशन प्रोफेशनल (RP) को बदलने का निर्देश दिया और आगे निर्देश दिया कि रेजोल्यूशन प्रोफेशनल 22 अप्रैल, 2024 के आदेश के अनुसार अपने कार्यों का निर्वहन नए सिरे से करेगा.

क्या है ये मामाल?

आपको बता दें कि  22 अप्रैल को NCLT में डियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस की याचिका पर मीडिया दिग्गज सुभाष चंद्रा के खिलाफ दिवालिया कार्यवाही शुरू करने का आदेश दिया. दरअसल सुभाष चंद्रा समूह की जुड़ी कंपनी विवेक इन्फ्राकान लिमिटेड को दिए गए कर्ज के गारंटर थे. 2022 में विवेक इन्फ्राकान द्वारा लगभग170 करोड़ रुपये का भुगतान नहीं करने के लिए बाद इंडिया बुल्स हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड ने NCLT का दरवाजा खटखटाया था.


 


कौन हैं वो सांसद जिनके PA पर लगा गोल्ड स्मगलिंग का आरोप, एयरपोर्ट से गिरफ्तार?

कस्टम विभाग के अधिकारियों ने दिल्ली हवाईअड्डे से सांसद के पर्सनल असिस्टेंट को गिरफ्तार किया है.

Last Modified:
Thursday, 30 May, 2024
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लोकसभा चुनाव के आखिरी चरण से ठीक पहले कांग्रेस सांसद शशि थरूर (Shashi Tharoor) के लिए शर्मिंदगी वाली खबर सामने आई है. केरल की तिरुवनंतपुरम सीट से मौजूदा सांसद थरूर के पर्सनल असिस्टेंट (PA) शिव कुमार को दिल्ली एयरपोर्ट से गिरफ्तार कर लिया गया है. सोने की तस्करी के आरोप में कस्टम विभाग ने यह कार्रवाई की है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, शिव कुमार दुबई से लौटे अपने किसी परिचित से सोने का हैंडओवर ले रहे थे, तभी कस्टम विभाग के अधिकारियों ने उन्हें पकड़ लिया. कुमार कांग्रेस सांसद शशि थरूर के असिस्टेंट हैं, ऐसे में उनके लिए भी यह कार्रवाई शर्मिंदगी की वजह बन गई है. 

55 लाख का है सोना
शिव कुमार के पास से जब्त किए गए सोने की कीमत करीब 55 लाख है. बताया गया कि थरूर के असिस्टेंट गोल्ड के बारे में कस्टम अधिकारियों को कोई ठोस जानकारी नहीं दे पाए. इसी के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. यह पूरा मामला बुधवार देर शाम दिल्ली के इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट के टर्मिनल-3 का है. अधिकारियों ने शिव कुमार सहित दो लोगों को सोने की तस्करी के आरोप में गिरफ्तार किया है.

इस तरह हुई कार्रवाई
रिपोर्ट्स में बताया गया है कि शिव प्रसाद दिल्ली एयरपोर्ट के टर्मिनल-3 पर जिस शख्स से मिलने पहुंचे थे, वो दुबई से लौटा था. टर्मिनल-3 पर आने वाली फ्लाइट के यात्रियों पर कस्‍टम विभाग की खास नजर होती है. संदेह होने पर अधिकारियों ने ग्रीन चैनल पर शिव कुमार को जांच के लिए रोका. जांच में उनके कब्‍जे से सोना बरामद किया गया. जब उनसे सोने के बारे में पूछा गया, तो वह कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए. इसके बाद कस्टम विभाग के अधिकारियों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

खामोश हैं थरूर
दिल्ली के इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर सोने की तस्करी के कई मामले सामने आ चुके हैं. पिछले हफ्ते ही इस मामले में कस्टम की टीम ने 5 विदेशी नागरिकों को पकड़ा था. इससे पहले, मुंबई एयरपोर्ट पर भी सोने की तस्करी का पर्दाफाश हुआ था. शिव कुमार के मामले में अब तक शशि थरूर की तरफ से कोई बयान सामने नहीं आया है. सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म ट्विटर पर एक्टिव रहने वाले थरूर ने वहां भी इस बारे में कुछ नहीं लिखा है. कांग्रेस की तरफ से भी इस पर कोई बयान अब तक नहीं आया है.  


वीडियो बनाने वाला Bobby कर बैठा कुछ बड़ा, उठा ले गई पुलिस; जानें उसकी पूरी जन्मकुंडली

चर्चित यूट्यूबर को पुलिस और NIA की टीम ने गिरफ्तार कर लिया है. उस पर गंभीर आरोप लगे हैं.

Last Modified:
Tuesday, 28 May, 2024
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बॉबी कटारिया (Bobby Kataria) से तो आप परिचित ही होंगे. वही चर्चित यूट्यूबर, जो हमेशा किसी न किसी वजह से खबरों में बना रहता है. उसके कई वीडियो विवाद का कारण भी बने हैं. फ्लाइट में सिगरेट सुलगना, सड़क पर शराब पीना और पुलिस से पंगा...जैसे वीडियो बॉबी कटारिया की पहचान बन गए हैं. हालांकि, अब मामला केवल विवादस्पद वीडियो बनाने तक ही सीमित नहीं रहा है. बॉबी ने कुछ ऐसा कर दिया है, जो उसे बहुत भारी पड़ने वाला है. पुलिस और NIA ने कल उसे गिरफ्तार कर लिया और वो कब तक सलाखों के पीछे रहेगा, फिलहाल कुछ भी कहना मुश्किल है.  

सोशल मीडिया पर सैकड़ों चाहने वाले
हरियाणा के गुरुग्राम में बसई गांव के रहने वाले बॉबी कटारिया का असली नाम बलविंदर कटारिया है. एक संपन्न परिवार से ताल्लुक रखने वाला बॉबी बॉडी बिल्डिंग का शौकीन है. शुरुआत में वह जिम में वर्कआउट करते हुए वीडियो सोशल मीडिया अकाउंट पर शेयर करता रहता था. बाद में उसने कुछ ऐसे वीडियो बनाने शुरू किए, जिन्होंने बड़े पैमाने पर लोगों का ध्यान आकर्षित किया. सोशल मीडिया पर उसकी तगड़ी फैन फॉलोइंग है. अकेले इंस्टाग्राम पर ही कटारिया के 3 लाख से ज्यादा फॉलोअर्स हैं.  

एकदम से ऐसा हुआ था फेमस
बॉबी 2017 में एकदम से सुर्खियों में आ गया था. दरअसल, उसने गुरुग्राम और फरीदाबाद में पुलिस के खिलाफ अभियान चलाया था. वह कथित रूप से पुलिसकर्मियों की मनमानी और गलत काम को लाइव अपने फॉलोअर्स को दिखाता था. पुलिस को लेकर लोगों के दिल में कोई न कोई शिकायत रहती ही है, इस वजह से बॉबी हिट हो गया. हालांकि बाद में गुरुग्राम और फरीदाबाद पुलिस ने उसके खिलाफ मामला दर्ज किया था. लेकिन इससे उसे कोई खास फर्क नहीं पड़ा. इसके बाद से बलविंदर कटारिया की लोकप्रियता बढ़ती चली गई और वो खुद को सेलेब्रिटी समझने लगा. उसने कई ऐसे वीडियो बनाए, जिन पर खूब बवाल मचा. 

विवादों में रहे हैं कई वीडियो
2022 में कटारिया स्पाइसजेट के विमान में सिगरेट सुलगाते नजर आया था. यह वीडियो दुबई से दिल्ली जाने वाली फ्लाइट में 20 जनवरी 2022 को शूट किया गया था. भारत में फ्लाइट में स्मोकिंग बैन है और पकड़े जाने पर जेल या जुर्माने का प्रावधान भी है. इसके बावजूद कटारिया ने अपने वीडियो के लिए नियम तोड़े और पैसेंजर्स की जान जोखिम में डाली. इसी तरह अपने एक वीडियो में वह सड़क पर खुलेआम शराब पीता हुआ नजर आया था. वीडियो में दिखाया गया था कि कटारिया ने सड़क पर कुर्सी डाल रही है और उस पर बैठकर पैग बना रहा है. इस मामले में उत्तराखंड के डीजीपी ने जांच के आदेश भी दिए थे.   

किसलिए हुआ गिरफ्तार? 
वीडियो बनाकर सुर्खियां बंटोरने वाले बॉबी कटारिया ने अब कुछ ऐसा कर दिया है, जो उसे बहुत भारी पड़ सकता है. मीडिया रिपोर्ट्स एक अनुसार, बॉबी ने उत्तर प्रदेश के रहने वाले दो युवकों - अरुण कुमार और मनीष तोमर को UAE और सिंगापुर में नौकरी दिलाने का वादा किया. इसके बदले में उसने दोनों युवकों से चार लाख रुपए की डिमांड की. अरुण और मनीष को धोखे से लाओस ले जाया गया और वहां इनके पासपोर्ट छीन लिए गए. इसके बाद दोनों को गैरकानूनी तरीके से चल रहे एक कॉल सेंटर में काम करने को मजबूर किया गया. हालांकि, दोनों किसी तरह वहां से निकलकर भारतीय दूतावास पहुंचे और पूरी कहानी बयां की. भारत लौटने के बाद उन्होंने बॉबी कटारिया के पर FIR दर्ज कराई. सोमवार को NIA और गुरुग्राम पुलिस की टीम ने बॉबी कटारिया को उसके गुरुग्राम स्थित घर से गिरफ्तार कर लिया. 

इतने करोड़ का मालिक है बॉबी
अब जानते हैं कि यह विवादास्पद यूट्यूबर आखिर कितना अमीर है. बॉबी कटारिया को नेता बनने का भी शौक है और इसी शौक को पूरा करने के लिए उसने 2019 में फरीदाबाद लोकसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा था. हालांकि, इस चुनाव में उसे केवल 393 वोट ही मिल सके. इस दौरान, उसने चुनाव आयोग को दिए हलफनामे में अपनी संपत्ति करीब 12 लाख रुपए बताई थी. जबकि मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बॉबी करीब 41 करोड़ रुपए की प्रॉपर्टी का मालिक है. उसके पास गुरुग्राम में एक लग्जरी घर और कई महंगी कारें हैं. उसकी कमाई का सबसे बड़ा हिस्सा यूट्यूब से आता है. उसका गुरुग्राम में Banana Godown है. इसके अलावा, उसने एक NGO की स्थापना भी की है. 


रणजीत सिंह हत्याकांड में जिस राम रहीम को मिली बड़ी राहत, उसके पास है कितनी दौलत?

डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम पर आरोप था कि उसके इशारे पर रणजीत सिंह की हत्या की गई.

Last Modified:
Tuesday, 28 May, 2024
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डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम (Dera Sacha Sauda Chief Gurmeet Ram Rahim) को चर्चित रणजीत सिंह हत्याकांड में पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट से बड़ी राहत मिली है. इस मामले में कोर्ट ने राम रहीम और चार अन्य को बरी कर दिया है. इस हत्याकांड में सीबीआई कोर्ट ने राम रहीम को दोषी करार दिया था. डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख के प्रमुख ने इसके खिलाफ हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.

CBI कोर्ट से मिली थी ये सजा
रणजीत सिंह सिरसा डेरे के प्रबंधक थे. 10 जुलाई 2002 को उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. 2003 में इस हत्याकांड की जांच सीबीआई को सौंपी गई थी. सीबीआई ने अपनी जांच में पाया कि गुरमीत राम रहीम सहित पांच लोगों ने इस हत्याकांड को अंजाम दिया है. जांच एजेंसी की दलीलें और सबूतों के आधार पर सीबीआई कोर्ट ने राम रहीम और चार अन्य को दोषी करार देते हुए उम्र कैद की सजा सुनाई थी. राम रहीम ने सीबीआई कोर्ट के फैसले के खिलाफ पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में अपील की थी, जिस पर अब फैसला आ गया है.

किसलिए हुई थी हत्या?
सीबीआई की चार्जशीट में बताया गया था कि 10 जुलाई 2002 को राम रहीम के इशारे पर रणजीत सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. दरअसल, राम रहीम को शक था कि रणजीत ने अपनी बहन से वो पत्र लिखवाया था, जिसमें एक गुमनाम साध्वी ने डेरा सच्चा सौदा प्रमुख पर यौन शोषण का आरोप लगाया था. यह चिट्ठी तत्कालीन प्रधानमंत्री को लिखी गई थी. साध्वी ने चिट्ठी के माध्यम से राम रहीम के खिलाफ जांच की मांग की थी.

पत्रकार को गोलियों से भूना था 
डेरा प्रमुख अपनी दो शिष्याओं के साथ बलात्कार के आरोप में 20 साल जेल की सजा काट रहा है. राम रहीम को पत्रकार राम चंदर छत्रपति की हत्या का भी दोषी ठहराया गया है, जिसमें उसे आजीवन कारावास की सजा हुई है. पत्रकार राम चंदर ने साध्वी की गुमनाम चिट्ठी को अपने सांध्य कालीन समाचार पत्र ‘पूरा सच’में प्रकाशित किया था. इस वजह से 24 अक्तूबर 2002 को उन्हें गोलियों से छलनी कर दिया गया था और 21 नवंबर 2002 को दिल्ली के अपोलो अस्पताल में रामचंद्र की मौत हो गई थी. 

अकेले हरियाणा में इतनी संपत्ति
चलिए यह भी जान लेते हैं कि रणजीत सिंह हत्याकांड में राहत पाने वाला गुरमीत राम रहीम कितना अमीर है. डेरा सच्चा सौदा प्रमुख राम रहीम करीब दो हजार करोड़ की दौलत का मालिक है. हरियाणा में ही डेरा की 1600 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति है. इसके अलावा उसने उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, पंजाब के साथ-साथ कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में भी संपत्ति बनाई है. सरकारी आंकड़े बताते हैं कि डेरा की संपत्ति हरियाणा के करीब-करीब सभी जिलों में है. सिरसा में सबसे ज्यादा 1453 करोड़ की सपंत्ति है. अंबाला में 32.20 करोड़, झज्जर में 29.11 करोड़, फतेहाबाद में 20.70 करोड़, जींद में 19.33 करोड़, सोनीपत में 17.65 करोड़, कैथल में 11.16 करोड़, कुरुक्षेत्र में 7.42 करोड़, हिसार में 7.03 करोड़, करनाल में 6 करोड़, भिवानी में 3.87 करोड़, यमुनानगर में 3.14 करोड़, पानीपत में 2.82 करोड़, फरीदाबाद में 1.56 करोड़, रोहतक में 47 लाख और रिवाड़ी में राम रहीम की 37 लाख रुपए की सपंत्ति है.
 


बड़ी मुश्किल में फंसी बजट एयरलाइन, SpiceJet की उड़ानों पर लग सकता है ब्रेक!

स्पाइसजेट को दिल्ली हाई कोर्ट के डबल बेंच से तगड़ा झटका लगा है. इससे आने वाले दिनों में कंपनी की उड़ानें प्रभावित हो सकती हैं.

Last Modified:
Monday, 27 May, 2024
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बजट एयरलाइन स्पाइसजेट (SpiceJet) बड़े संकट में घिर गई है. दिल्ली हाई कोर्ट की 2 जजों की बेंच ने सिंगल जज के उस आदेश को बरकरार रखा है, जिसमें एयरलाइन से दो एयरक्राफ्ट और तीन इंजन अपने पट्टेदार TWC एविएशन को वापस लौटाने का आदेश दिया था. इसका मतलब है कि स्पाइसजेट के पास अब कोई विकल्प नहीं है. ऐसे में उसकी उड़ानें प्रभावित होना लाजमी है. इस झटके के बाद कंपनी ने अपील वापस लेने और मामले को सिंगल जज के समक्ष आगे बढ़ाने का फैसला लिया है. 

कंपनी को दिए कुछ अतिरिक्त दिन
अदालत ने स्पाइसजेट को एयरक्राफ्ट और इंजन वापस करने के लिए दी गई मोहलत 28 मई से बढ़ाकर 17 जून कर दी है. बता दें कि 15 मई को, दिल्ली हाई कोर्ट के सिंगल जज की बेंच ने एक अंतरिम आदेश पारित कर स्पाइसजेट को दो विमान और तीन इंजन, TWC एविएशन को वापस लौटाने का आदेश दिया था. दरअसल, एयरलाइन निर्धारित डेडलाइंस पर भुगतान करने में विफल रही है, इसके मद्देनजर TWC ने अदालत का दरवाजा खटखटाया है. सिंगल बेंच ने TWC के हक में फैसला सुनाया था और अब दो जजों की बेंच ने उसे बरकरार रखा है. 

120 करोड़ का करना है भुगतान
जस्टिस राजीव शकदर की अगुवाई वाली पीठ ने पहले के आदेश पर रोक लगाने से इंकार करते हुए कहा कि जब स्पाइसजेट पर पट्टादाता (Lessor) का 120 करोड़ रुपए से अधिक का बकाया है, तो इस प्रकार का कोई भी आदेश देना उचित नहीं होगा. अदालत ने स्पष्ट किया कि स्पाइसजेट को अपेक्षित लीज राशि का भुगतान किए बिना एयरक्राफ्ट और इंजन इस्तेमाल करने का अधिकार नहीं है. TWC दान के कारोबार में नहीं हैं. जब स्पाइसजेट ने एयरक्राफ्ट और इंजन वापस करने के लिए एक सप्ताह की मोहलत मांगी, तो अदालत ने उससे अपील वापस लेने को कहा. इसके बाद एयरलाइन ने अपनी अपील वापस लेते हुए मामले को सिंगल जज के समक्ष आगे बढ़ाने की बात कही.

कंपनी की 10% फ्लीट होगी प्रभावित
मामले की सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील अमित सिब्बल ने दलील दी कि स्पाइसजेट अगले 5 हफ्तों तक हर हफ्ते 500,000 डॉलर का भुगतान करने को तैयार है. उन्होंने कहा कि एयरक्राफ्ट और इंजन वापस करने से एयरलाइन को नुकसान होगा, क्योंकि यह उसके फ्लीट का करीब 10% है. सिब्बल ने आगे कहा कि स्पाइसजेट ने अब तक 15 पट्टादाताओं के साथ विवाद सुलझा लिया है और वह TWC के साथ विवाद भी सुलझा लेगी. जबकि पट्टादाता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील दयान कृष्णन ने तर्क दिया कि स्पाइसजेट पर न केवल लीज की राशि बकाया है, ​बल्कि उसने एयरक्राफ्ट, इंजन से कुछ हिस्सों को निकालकर उन्हें अपने अन्य एयरक्राफ्ट में इस्तेमाल किया है. जबकि कॉन्ट्रैक्ट के तहत इसकी अनुमति नहीं है.  

एयरलाइन के पास हैं इतने विमान
स्पाइसजेट के पास 33 ऑपरेशनल फ्लाइट्स का बेड़ा है, जिनमें से आठ वेट-लीज एयरक्राफ्ट हैं. ऐसे में यदि एयरलाइन को 2 एयरक्राफ्ट और तीन इंजन वापस करने होते हैं, तो उसका पूरा गणित गड़बड़ा जाएगा. गर्मी के मौसम में हवाई यात्रा करने वालों की संख्या काफी बढ़ जाती है. सभी एयरलाइन्स इसके मद्देनजर पहले से ही तैयारी शुरू कर देती हैं. स्पाइस बजट एयरलाइन है, उससे यात्रा करने वालों की अच्छी-खासी तादाद है. अब यदि उसके पांच विमान जमीन पर खड़े हो जाते हैं, तो कंपनी को बड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा. स्पाइसजेट पहले से ही नकदी संकट से जूझ रही है. ऐसे में उसके लिए तुरंत बकाया चुकाना संभव नहीं. लिहाजा, कोर्ट के आदेश के बाद यह आशंका उत्पन्न हो गई है कि स्पाइसजेट की कई उड़ानों पर ब्रेक लग सकता है.  


नीरव मोदी है जिसका मामा उस Mehul Choksi ने भारत न लौटने पर दिया मामू बनाने वाला तर्क

मेहुल चोकसी और नीरव मोदी पर पंजाब नेशनल बैंक से 14 हजार करोड़ के लोन फर्जीवाड़े का आरोप है.

Last Modified:
Friday, 24 May, 2024
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मेहुल चोकसी (Mehul Choksi) आपको याद है? जी हां, वही मेहुल चोकसी जो पंजाब नेशनल बैंक (PNB) घोटाले को अंजाम देने के बाद देश छोड़कर भाग गया था. इस भगोड़े हीरा कारोबारी ने भारत न लौटने का अब जो कारण बताया है, वो सुनकर आपना भी अपना सिर पकड़ लेंगे. मेहुल चोकसी का कहना है कि उसने आपराधिक मुकदमे से बचने के लिए भारत नहीं छोड़ा और न ही देश लौटने से इंकार कर रहा है. भारतीय अधिकारियों ने उसका पासपोर्ट सस्पेंड कर दिया है, इसलिए वह भारत नहीं लौट पा रहा.  

गीतांजलि जेम्‍स का चेयरमैन था चोकसी
मेहुल चोकसी गीतांजलि जेम्‍स लिमिटेड का चेयरमैन, मैनेजिंग डायरेक्टर था और समूह के प्रमोटर्स में भी शामिल था. चोकसी ने स्पेशल Prevention of Money Laundering Act (PMLA) कोर्ट में एक आवेदन के जरिए कहा कि वह कई वजहों से भारत नहीं लौट पा रहा है. इनमें से कुछ उसके नियंत्रण से बाहर हैं और इस आधार पर उसे भगोड़ा आर्थिक अपराधी घोषित नहीं किया जाना चाहिए. उसने यह भी कहा कि भारतीय अधिकारियों ने उसका पासपोर्ट सस्पेंड कर दिया है, इस वजह से वह भारत नहीं लौट पाया है. बता दें कि मेहुल चोकसी एक और भगौड़े नीरव मोदी का मामा है. दोनों पर PNB से 14 हजार करोड़ के लोन फर्जीवाड़े का आरोप है.

ED को बताई थी पासपोर्ट वाली बात
चोकसी ने दावा किया कि फरवरी 2018 में जारी समन के जवाब में उसने प्रवर्तन निदेशालय (ED) से कहा था कि वह भारत लौटने में असमर्थ है क्योंकि उसका पासपोर्ट भारतीय अधिकारियों की ओर से सस्पेंड कर दिया गया है. मेहुल चोकसी ने अपने आवेदन में अदालत से अनुरोध किया है कि पासपोर्ट के सस्पेंशन और उसके खिलाफ ED की ओर से की जा रही जांच से संबंधित दस्तावेज को तलब किया जाए. चोकसी ने अपने वकील विजय अग्रवाल के जरिए याचिका दायर की है. याचिका में कहा गया है कि चोकसी के खिलाफ मौजूदा कार्यवाही उसे भगोड़ा आर्थिक अपराधी घोषित करने से जुड़ी है. ऐसे में संबंधित दस्तावेज तलब करने की जरूरत है, ताकि निष्पक्ष फैसला हो सके.

पेशी पर नहीं आ रहा है भारत 
भगौड़े मेहुल चोकसी जनवरी 2018 में विदेश भाग गया था. बाद में यह पता चला कि उसने 2017 में ही एंटीगुआ-बारबुडा की नागरिकता ले रखी थी. PNB घोटाले की जांच कर रही केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) और प्रवर्तन निदेशालय (ED) जैसी एजेंसिया चोकसी के प्रत्यर्पण की कोशिश में जुटी हैं, लेकिन अब तक सफलता नहीं मिल पाई है. चोकसी खराब सेहत का हवाला देकर भारत में पेशी पर आने से इंकार कर चुका है. मालूम हो कि मेहुल चोकसी और नीरव मोदी पर PNB की मुंबई स्थित ब्रेडी हाउस ब्रांच से 14 हजार करोड़ से ज्यादा के घोटाले का आरोप है. बैंक अधिकारियों की मिलीभगत से 2011 से 2018 के बीच फर्जी लेटर ऑफ अंडरटेकिंग्स (LOU) के जरिए रकम विदेशी खातों में ट्रांसफर की गई थी.